रिपोर्ट- सुजीत पाण्डेय
पितृपक्ष के दौरान पिंडदान और तर्पण करने का बड़ा महत्व है. सनातन धर्म को मानने वाले लोग पितृपक्ष के दौरान अपने पितरों को मोक्ष प्राप्ति के लिए और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पिंडदान करते हैं. उन्हीं में कुछ लोग सिर्फ तर्पण करते हैं. अब मन में सवाल उठता है की क्या सिर्फ तर्पण से पितरों को मोक्ष मिल पायेगा या तर्पण के साथ पिंडदान करना होगा. इसका सवाल का जवाब सहज रूप से गया क्षेत्र के पंडित राजा आचार्य ने दिया है.
तर्पण का शाब्दिक अर्थ है जल अर्पण. तर्पण में पितरों को जल, दूध, तिल और कुश का अर्पण किया जाता है. यह प्रक्रिया आत्मा की शांति और उन्हें संतोष प्रदान करने के लिए की जाती है. तर्पण एक साधारण विधि है, जो किसी भी समय की जा सकती है, खासकर पितृपक्ष के दौरान. तर्पण में पितरों, देवताओं, ऋषियों को तिल मिश्रित जल अर्पित कर उन्हें तृप्त किया जाता है. तर्पण के लिए काले तिल मिश्रित जल को पितरों का ध्यान करते हुए अर्पित किया जाता है.
गया क्षेत्र के पंडित राजाचार्य बताते हैं कि जो लोग पहली बार श्राद्ध कर रहे होते हैं, उनके लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि श्राद्ध सबसे प्रमुख और आवश्यक कर्मकांड होता है. यह पितृ तृप्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है और इसके लिए सही समय और नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है. तर्पण भी आवश्यक होता है, लेकिन यह श्राद्ध से कम जटिल होता है और इसे आसानी से किया जा सकता है. अगर किसी कारणवश श्राद्ध नहीं किया जा सकता, तो तर्पण करके भी पितरों को तृप्त किया जा सकता है.