रिपोर्ट – राहुल प्रताप सिंह
दुर्गा पूजा का उत्स्व पुरे देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है. ये महोत्सव नवरात्रि के प्रथम दिन से लेकर विजय दशमी तक चलता है. इस दौरान भव्य पंडालों में मां दुर्गा की विशाल प्रतिमा को स्थापित किया जाता है. देश की कई जगहों पर एक अनोखी परम्परा कों सदियों से निभाई जा रही है. मां दुर्गा की जो मूर्ति स्थापित की जाती है, उसमें खास किस्म की मिट्टी शामिल की जाती है.
माँ दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए पांच और दस जगहों की मिट्टी का होता है इस्तेमाल.
मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए कहीं पांच तो कहीं दस तरह कि मिट्टी ली जाती है. ऐसा कहते हैं कि देवों और प्रकृति के अंश से मां दुर्गा का तेज प्रकट होता है, इसलिए इसमें कई जगहों की मिट्टी को शामिल किया जाना जरूरी है. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस प्रतिमा को बनाने के लिए वेश्यालय के आंगन की मिट्टी का प्रयोग किए जाने की भी परंपरा है.
वेश्यालय की मिट्टी का है खास महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, एक वेश्या मां दुर्गा की बड़ी भक्त थी. लेकिन वो समाज में अपने तिरस्कार से बहुत दुखी थीं. तब मां दुर्गा ने उसकी सच्ची श्रद्धा को देखते हुए ये वरदान दिया था कि जब तक उसकी प्रतिमा में वेश्यालय की मिट्टी को शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक देवी का उस मूर्ति में वास नहीं होगा.
वेश्याओं के आंगन की मिट्टी के अलावा, पर्वत, नदी के किनारे, बैल के सींघ, हाथी के दांत, दीमक के ढेर, महल के द्वार और चौराहे आदि की मिट्टी को भी शामिल किया जाता है.
समाज कों देता है खास संदेश
वेश्यालय की मिट्टी के पीछे एक पहलू कई लोगों का मानना है कि मूर्तियों के निर्माण में वेश्यालय की मिट्टी के इस्तेमाल का मकसद उस पितृसत्तामक समाज के मानस को कचोटना है जिसकी वजह से महिलाओं को नर्क में धकेलने वाला ये कारोबार चलता है.