रिपोर्ट – राहुल प्रताप सिंह
ट्रेनों में सफर करने वालों के मन में उस समय असमंजस्य रहता है, जब उन्हें वेटिंग टिकट मिलता है. पता नहीं होता है कि टिकट कंफर्म होगा या नहीं. उन्हें यात्रा प्लान करने में परेशानी होती है. कई बार यात्रियों को कंफर्म टिकट मिलने में समस्या होती है. इसके चलते वे वेटिंग टिकट खरीद लेते हैं और उसके कंफर्म होने का इंतेजार करते हैं.
पर्व – त्यौहार और वेडिंग सीजन में होती है परेशानी
ट्रेनों में सबसे ज्यादा टिकट कन्फर्म होने में फ़जीहत पर्व – त्यौहार और वेडिंग सीजन में होती है. कुछ ट्रेनों में वेटिंग 500 के करीब तक पहुंच जाती है. हालांकि उस दौरान कंफर्म होने की संभावना कम हो जाती है. वेटिंग टिकट दो तरह से कंफर्म होता है पहला सामान्य तरीके से दूसरे रेलवे के इमरजेंसी कोटा से.
वेटिंग टिकट कन्फर्म होने का क्या है फार्मूला
रेलवे के अनुसार करीब 4 से 5 फीसदी लोग टिकट लेने के बाद भी ट्रेन में सफर नहीं करते हैं. इसे भी जोड़ लिया जाए तो करीब 25 फीसदी यानी एक कोच में 18 सीट तक कंफर्म हो सकती है. रेलवे के अनुसार ट्रेनों में रिजर्वेशन कराने के बाद औसतन 21 फीसदी लोग टिकट कैंसिल कराते हैं. इस तरह अगर 21 फीसदी संभावना कंफर्म होने की रहती है. यानी स्लीपर के एक कोच में 72 सीटों औसतन 14 सीटें कंफर्म होने की संभावना रहती है.
पूरी ट्रेन में कितनी सीटें हो सकती है कन्फर्म
उदाहरण के लिए किसी भी ट्रेन में स्लीपर के 10 कोच हैं. उनके 10 कोचों में 18-18 सीटें कंफर्म होने की संभावना रहती है. इस तरह वेटिंग 180 कंफर्म हो सकती हैं. यही फार्मूला थर्ड, सेकेंड और फर्स्ट ऐसी में भी लागू होता है.
इमरजेंसी कोटा के तहत बीमार व्यक्ति कों मिलती है कन्फर्म टिकट
रेल मंत्रालय के पास इमरजेंसी कोटा होता है. इसके तहत 10 फीसदी सीटें रिजर्व होती हैं. इस तरह स्लीपर, थर्ड एसी, सेकेंड एसी और फर्स्ट ऐसी में अलग-अलग नंबर होता है. यह कोटा इसलिए होता है कि अगर कोई बीमार व्यक्ति या जरूरतमंद हो तो रेलवे कंफर्म सीट दे सके. उदाहरण के लिए 10 फीसदी में पांच फीसदी ही इमरजेंसी कोटे के तहत कंफर्म टिकट दिया गया तो 5 फीसदी वेटिंग कंफर्म होने की संभावना और बढ़ जाएगी.