इनदिनों सोशल मीडिया पर ‘ रूह अफजा ‘ सिरप की चर्चा जोड़ो पर है चर्चा कारण योग गुरु बाबा रामदेव से जुड़ा हुआ है और लोगों के जेहन में इसके पाकिस्तानी रिश्ते को लेकर भी संसय रहता है . रूह अफजा सिरप का बाबा रामदेव और पाकिस्तान से रिश्ते को लेकर जानिए सबकुछ.
1906 में दिल्ली के एक संकरी गली से हुई थी ‘ रूह अफजा ‘ शुरुआत
बात 1906 की है जब भारत अंग्रेजी हुकूमत का गुलाम था तब दिल्ली के लाल कुंवा बाज़ार में एक छोटा सा दवाखाना था हमदर्द दवाखाना यहां यूनानी हकीम बैठते थे हाकिम हफ़ीज़ अब्दुल मजीद. लोग उनके पास पाचन संबंधित शिकायत लेकर पहुंच रहे थे ज्यादातर मामले हिटस्ट्रोक ( गर्मी के कारण होने वाली बीमारियां ) से जुड़े हुए थे.
तभी हाकिम हफीज अब्दुल मजीद ने कुछ जड़ी बुट्टियों को मिलाकर जैसे खसखस, फल, एक शरबत विभिन्न जड़ी बुट्टियों का घोल तैयार किया और वे उस घोल को मरीजों को पिने के लिए देने लगे लोगों को इस शरबत से काफी फायदा पहुंचा उसके बाद हाकिम हफ़ीज़ अब्दुल मजीद ने दिल्ली में एक दवाखाना से रूह अफ़ज़ा की शुरुआत की. यूनानी चिकित्सा पर आधारित ये शरबत हीट स्ट्रोक से बचाव के लिए बना. इसका नाम, स्वाद और रंगीन लेबल सभी दिलों को छू गए.
‘ रूह अफजा ‘ नाम के पीछे की कहानी
रूह अफजा नाम रखने का पीछे की कहानी बेहद दिलचस्प है रूह अफजा का मतलब होता है ( रूह को ताजगी देने वाला ) हाकिम मजीद के मुताबित जिस समय यह तैयार हुआ उस समय गर्मी काफी पड़ रही थी ज्यादातर लोग शरीर में पानी की कमी से बीमार पड़ रहे थे हाकिम मजीद उन्हें दवाई के रूप में यही सिरप देते थे जो पीते ही शरीर को ठंडक पंहुचाती थी.
तीन भाषाओं में होती है पैकिंग
जानकारी के लिए बता दें रूह अफजा की वर्ष 1906 से लेकर अबतक बोतल के लेबल पर तीन भाषाओं में पैकिंग होती है जिसमें अंग्रेजी, उर्दू और हिंदी में लिखी होती है.
‘ रूह अफजा ‘ का पाकिस्तान से रिश्ता क्या है
दरअसल जिस समय ‘ रूह अफजा ‘ की शुरुआत हुई उस समय पूरा भारत अंग्रेजी हुकूमत का गुलाम था जब 1947 मे भारत के विभाजन के बाद दो भाग में बंट गया हिंदुस्तान और पाकिस्तान. हफीज अब्दुल मजीद के दो बेटे थे छोटा बेटा विभाजन के बाद पाकिस्तान चला गया और वहाँ कराची शहर के दो कमरों से एक अलग हमदर्द की शुरुआत की और हिंदुस्तान में बड़े बेटे ने संभाला.
इनदिनों सुर्खियों में क्यों है ‘ रूह अफजा ‘ ?
योग गुरु बाबा रामदेव ने रूह अफजा को ‘शरबत जिहाद’ से जोड़ कर एक नया विवाद पैदा कर दिया है. बाबा रामदेव के अनुसार इससे होने वाली कमाई मदरसे और मस्जिद बनाने में जाती है. जबकि हमदर्द 1948 में एक गैरलाभकारी ट्रस्ट बन गया था. कंपनी का सारा मुनाफा हमदर्द फाउंडेशन को जाता है.
रामदेव ने आरोप लगाया, “एक कंपनी है जो आपको शरबत देती है, लेकिन इससे होने वाली कमाई का इस्तेमाल मदरसे और मस्जिद बनाने में किया जाता है. अगर आप वह शरबत पीते हैं, तो मदरसे और मस्जिद बनेंगे. लेकिन अगर आप यह (पतंजलि के गुलाब शरबत का जिक्र करते हुए) पीते हैं, तो गुरुकुल बनेंगे, आचार्य कुलम विकसित होगा, पतंजलि विश्वविद्यालय का विस्तार होगा और भारतीय शिक्षा पद्धति का विकास होगा.”