कही छाता होली तों कही बुढ़वा होली, बिहार में होली के भी है कई रंग …

होली का नाम आते ही मन में रंगो की तरंग दौर जाती है. सभी राज्यों में इसे मनाने की अलग परंपराएं और रीति-रिवाज हैं। बरसाने की लठमार होली, तो मथुरा-वृंदावन की अबीर-गुलाल और फूलों की होली। सभी जगह होली मनाने के पीछे अलग-अलग मान्यताएं भी हैं। बिहार का होली पुरे देश में चर्चित रहती है. बिहार में कुर्ताफार होली का प्रचलन है पर इससे हटके बिहार में कई जगहों कई तरह से होली खेली जाती है आइये बताते है.

बिहार में होली के भी है कई रंग

बता दें की बिहार में होली कई तरह से खेली जाती है कही छाता होली, बुढ़वा होली, धुरखेल होली तों कही घुमौर होली ये होली बिहार के अलग – अलग जिलें कस्बे में खेली जाती है.

छाता होली

बिहार के समस्तीपुर जिला मुख्यालय से 42 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित धमौन गांव है। जहां होली के लिए इस गांव के प्रत्येक टोले में बांस के विशाल, कलात्मक छाते बनाए जाते हैं । पूरे गांव में बने 30 – 35 छातों को रंगीन कागज तथा घंटियों से सजाया जाता है। होली की सुबह इन छातों के साथ सभी ग्रामीण अपने कुल देवता निरंजन मंदिर में एकत्रित होकर अबीर – गुलाल चढ़ाते हैं और ढ़ोल – हारमोनियम की लय पर “धम्मर” और “होली” गाते हैं।

बुढ़वा होली

बुढ़वा होली का जिक्र शिव पुराण में भी है। कहा जाता है कि आदिकाल में होली के दिन भगवान विष्णु-महालक्ष्मी होली खेल रहे थे। तब नारद मुनि ने इसकी चर्चा भगवान शिव से की थी। भगवान शिव ने अपने प्रमुख गण वीरभद्र को बताया था कि मंगल का दिन हो और अभिजीत नक्षत्र हो, उस दिन वह होली खेलते हैं। पंचागों में भी ‘बुढ़वा मंगल’ का जिक्र मिलता है। नवादा, औरंगाबाद, जहानाबाद, गया और अरवल के साथ राजधानी पटना के कुछ इलाकों में बुढ़वा होली मनाने की परंपरा है। बुढ़वा होली मनाने के पीछे भी कई कहानियां हैं। यह होली बुजुर्गों के सम्मान की होली है। बुढ़वा होली अकेला पर्व है, जो बुजुर्गों के नाम से है।

धुरखेल होली

धुरखेल, होली से जुड़ी एक परंपरा है. यह भोजपुरी क्षेत्र में मनाई जाती है. इस दिन लोग एक-दूसरे पर मिट्टी और कीचड़ लगाते हैं. होलिकादहन के अगले दिन बचे उसके राख होली खेली जाती है.देवी स्थान जाकर होली गीतों को विराम देकर चैती गीत गाने का आरंभ किया जाता है.

घुमौर होली

घुमौर होली बिहार सहरसा जिले बनगाँव में खेली जाती है. इस होली का इतिहास काफी पुराना है. पहली बार यही होली 1810 में खेली गयी थी तबसे यह प्रचलन चलता आ रहा. ब्रज की होली की जैसी बेमिसाल है लोग देवी स्थान के आगे घूम-घूम कर होली खेलते हैं.

कहा जांता है कि यह सांप्रदायिक सोहार्द का भी एक मिशाल है. इस होली में मुस्लिम भाई भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. इस वर्ष भी यहां सभी जाति सभी धर्म के लोगों ने एक साथ भगवती स्थान में परंपरागत तरीके से होली खेली. घुमौर होली कोशी-मिथिला की पारंपरिक होली है. मान्यता है कि इसकी परंपरा भगवान् श्री कृष्ण के काल से चली आ रही है. 18 वीं सदी में यहां के प्रसिद्ध संत लक्ष्मी नाथ गौसाई बाबाजी ने इसे शुरू किया था.