रिपोर्ट- सुजीत पाण्डेय
एक ओर हजारों की तादाद में गोरी फौज और दूसरी ओर महज 14 वर्ष की आयु में 1939 में ही अंग्रेजों के खिलाफ हल्ला बोल दिए थे स्वतंत्रता सेनानी विष्णु देव नारायण सिंह. गोलियों और तोपों की गर्जना के बीच सनसनाते अंग्रेजों के थाने में पहुंचकर ब्रिटिश झंडे को जला दिया था। इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत द्वारा कड़ी यातना भी दी गई थी। यातना की चीख-पुकार से पूरा हजारीबाग केंद्रीय कारागार चीत्कार रहा था. पिछले साल 22 जुलाई को उनकी लंबी बीमारी से मौत हो गई थी. आज उनकी पहली पुण्यतिथि है पर अफ़सोस चंद स्वजनों को छोड़कर ऐसे वीर को किसी ने नहीं याद किया.
ब्रिटिश झंडा जलाने वाले स्वतंत्रता सेनानी विष्णु देव नारायण सिंह का 22 जुलाई 2023 शुक्रवार के सुबह ईलाज के क्रम में निधन हो गया था. विष्णु देव नारायण सिंह गया जिला के टिकारी थाना के चितोखर गांव के रहने वाले थे। स्वतंत्रता सेनानी कई दिनों से बीमार चल रहे थे, जिनका इलाज गया शहर के निजी अस्पताल में चल रहा था। 2019 में उन्हें राष्ट्रपति राम नाथ कोविद ने सम्मानित किया था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वतंत्रता सेनानी विष्णुदेव नारायण सिंह के निधन पर दुःख जताया था. उस वक़्त मुख्यमंत्री ने कहा था कि स्वतंत्रता संग्राम में विष्णुदेव नारायण सिंह का अहम योगदान था। इस साल किसी ने याद नहीं किया.
गया जिले के टिकारी प्रखंड के चितखोर गांव के एक जमींदार के घर साल 1925 के जनवरी माह में जन्मे विष्णु देव नारायण सिंह के जहन में आजादी की ऐसी अलख जागी कि उन्होंने 14 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया. घर छोड़ते ही उन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश झंडा जला डाला. विष्णु देव नारायण यहीं नहीं रुके थे. उन्होंने इसके बाद टिकारी थाना और 13 दिन बाद बिहारशरीफ थाने को जलाकर राख कर दिया.
अंग्रेजों को खुली चुनौती दे चुके विष्णु देव नारायण सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और तीन साल तक अलग-अलग जेलों में रखकर यातनाएं दी. मुझसे बातचीत(सुजीत पाण्डेय) में आजादी की वीरगाथा बताते हुए विष्ण देव नारायण ने कहा था कि उन्हें फुलवारी शरीफ कैंप जेल में जंजीरों से बांधकर रखा गया और खूब यातनाएं दी गई थी. अंग्रेज एक जेल में स्थायी रूप से कभी नहीं रखते थे. आजादी की लड़ाई में शामिल होने से लेकर देश के वर्तमान हालातों के बारे में स्वतंत्रता सेनानी विष्णुदेव नारायण सिंह बेबाकी से अपनी बात रखते हुए आगे कहा हैं की मैं जेल में तीन वर्ष तक रहा था. इस दरम्यान अंग्रेजी हुकूमत ने बहुत जुल्म किया. जेल के अंदर कैदी से तेल का कोल्हू चढ़वाया जाता था. हमलोग ने विरोध किया, तो दोनों हाथ की अंगुली तोड़ दी गईं थी. खाने के लिए हमेशा रूखा सूखा मिलता था.
विष्णुदेव नारायण सिंह कहा करते थे मुझे कई बार राष्ट्रपति ने सम्मानित किया है लेकिन मैं सम्मानित नहीं होना चाहता हूं. सम्मानित होकर क्या मिलेगा. मेरा देश सम्मानित हो, मेरा देश खुशहाल हो. यही चाहता हूं. हम लोगों ने आजादी की लड़ाई खुद सम्मानित होने के लिए नहीं लड़ी थी. देश का हर अवाम सम्मानित महसूस करे इसलिए लड़े थे.