बिहार में गर्मी हर साल रिकॉर्ड तोड़ रही है। ऐसे में मजदूरों और कामकाजी महिलाओं के लिए काम करना बहुत मुश्किल हो जाता है। बढ़ती गर्मी में कामकाजी महिलाओं को अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अब इस समस्या का समाधान एक योजना के तहत कर दिया गया है. अब बिहार में पारा 40 के पार होते ही महिलाओं के खाते में 300 रुपये आ जायेंगे। फिलहाल यह योजना पटना, गया, मुंगेर, भागलपुर, बांका, कटिहार, पूर्णिया और सीवान जिलों में शुरू की गई है।
क्या है योजना
यह एक हीटवेव इंश्योरेंस है. इस इश्ंयोरेंस स्कीम के तहत गर्मी में श्रमिकों की कमाई घटने से उनके जीवन पर पड़ने वाले असर को रोकने की कोशिश की जा रही है। इस बीमा की अवधि अप्रैल से सितंबर तक होगी। गुजरात के Self Employed Women Association (SEWA ) ने इस योजना की पहल की है। संगठन ने पहले साल बिहार की डेढ़ लाख महिलाओं को जोड़ने का लक्ष्य रखा है। बाद में इसे प्रदेश के बाकी जिलों में भी बढ़ाया जाएगा।
माना जा रहा है कि यह योजना पूरे बिहार राज्य में भी लागू हो सकती है।
कैसे मिलेगा योजना का लाभ
Sewa की सदस्यता लेने के बाद ही आपको हीट वेव इंश्योरेंस के तहत 300 रुपये का लाभ मिलेगा। सदस्यता लेने के बाद आपको बीमा के लिए आवेदन करना होगा। आवेदन के दौरान आधार कार्ड के साथ 300 रुपये का शुल्क देना होगा। शुल्क के रूप में अदा की गई 300 रुपए की राशि एक महीने बाद 100 रुपए इंसेंटिव के साथ 400 रुपए के रूप में वापस की जाएगी।
Sewa संगठन क्या है
प्रसिद्ध गांधीवादी इला भट्ट ने 1972 में असंगठित क्षेत्र की महिला श्रमिकों के लिए सेल्फ-एप्लाइड वूमेन एसोसिएशन-सेवा नामक एक श्रमिक संगठन की शुरुआत की थी। फिलहाल इस संगठन से देशभर में 30 लाख महिलाएं जुड़ी हुई हैं.
एक माह में कितना पैसा मिलेगा
हर महीने 40 डिग्री से ऊपर तापमान वाले दिनों की गणना कर महिलाओं के खाते में प्रतिदिन 300 रुपए के हिसाब से राशि डाली जाएगी। ट्रेड यूनियन खुद ही मौसम विभाग या अन्य आंकड़ों के आधार पर अधिकतम तापमान की गणना कर महिलाओं के खाते में राशि डाल देगा।
मतलब जिस-जिस दिन तापमान ज्यादा रहेगा, उस दिन के हिसाब से महिलाओं के खाते में पैसा आएगा। दरअसल यह योजना बिहार की उन महिला श्रमिकों के लिए शुरू की गई है, जिन्हें पेट पालने के लिए मजबूरी में भीषण गर्मी में भी घर से बाहर निकलना पड़ता है। उनके सामने अक्सर चुनौती बनी रहती है कि सूर्य की आग देखें या पेट की आग बुझाने का इंतजाम करें। इस तरह की परेशानी को देखते हुए इस योजना को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया है।