रिपोर्ट- सुजीत पाण्डेय
हिन्दी भाषा का विस्तार आज के तकनीकी युग मे और भी तीव्र गति से हो रहा है. जापान से लेकर इंग्लैंड तक लोग हिन्दी लेखकों की किताबें मूल भाषाओं में भी ख़रीद और पढ़ रहे हैं. कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग मे अनेक नई सम्भावनाएँ हिन्दी के लिए खुली हैं. उक्त बातें दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की आचार्या प्रो. अल्पना मिश्र ने कहीं. उनका आगमन एमयू हिन्दी विभाग द्वारा हिन्दी दिवस के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘नई सदी की हिन्दी’ परिवर्तन और संभावनाएँ’ में बतौर मुख्य अतिथि हुआ था.
प्रो. मिश्र ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर हिन्दी के समक्ष प्रस्तुत परिवर्तन और संभावनाओं पर बात रखी. यह भी रेखांकित किया कि अनेक भाषाओं और परिस्थितियों को हिन्दी ने अनुकूलित कर लिया है इसीलिए वह इतनी मजबूत बन कर उभरी है. उसके इस सामर्थ्य को हिन्दी के पूर्वजों और आज़ादी के नायकों ने पहचान कर ही राजभाषा के पद पर विराजमान किया.
कुलपति प्रो. शशि प्रताप शाही ने अपने वक्तव्य में कहा कि व्यक्तिगत रूप से 99 प्रतिशत काम हिन्दी भाषा मे ही करता हूँ. यह प्रयास दैनिक जीवन मे सभी को करना चाहिए.
कुलपति ने कहा कि इज़रायल, जापान, चीन, जर्मनी या इंग्लैंड जैसे तमाम देशों का उदाहरण न भी लें तो हमारे देश मे ऐसे सत्प्रयास हो रहे हैं जिनसे सीखकर हम हिन्दी को नई संभावनाओं की ओर ले जा सकते हैं. परिवर्तन तो प्रकृति का शाश्वत नियम है इसलिए भाषा मे वर्तमान परिवर्तनों कल स्वीकार कर उनके कारणों पर विचार करना चाहिए.
कार्यक्रम का आरम्भ और समापन श्वेता की संगीत प्रस्तुति से हुआ. नीलम, प्रियंका, शिवानी, महिमा, मृणालिनी, भुवन मोहिनी आदि अनेक हिन्दी छात्राओं ने कुलपति का स्वागत और अभिनन्दन किया. मंच संचालन हिन्दी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. परम प्रकाश राय और गृह विज्ञान विभाग की प्रभारी डॉ. दीपशिखा पांडेय ने किया.