फिश पॉलिटिक्स फिर डूबायेगा लालू की नैया

मुकेश सहनी आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर हो रही बैठकों में बड़ी बड़ी मछली रखकर मीटिंग कर रहे है. बड़ी मछली मल्लाहों पर असर नहीं डाल पा रही है. मुकेश सहनी करोड़ों खर्च करके सहनी समाज का नेता बनने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन सफलता उनको नहीं मिल रही है. इसका ताज़ा उदाहरण बीता लोकसभा चुनाव है. सहनी समाज ने मुकेश सहनी को छोड़ भाजपा प्रत्याशी को वोट दिया.

अब आपको सहनी की मछली पॉलिटिक्स के बारे में पूरा विस्तार से बताते हैं. मुकेश सहनी ने आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर बैठक की, इस दौरान बैठक की टेबल पर दो कतला मछली भी रखी। जिसका वजन 43 किलो था। उन्होंने कहा मेरे साथ मछली देख कर कई लोग परेशान हो जाते हैं, लेकिन मेरा कर्म और धर्म मछली बेचना, मछली मारना और मछली खाना है। मैं मछुआरा का बेटा हूं।

सही बात है मछूआरा का काम है मछली मारना लेकिन बिहार का मछुआरा मुकेश सहनी को अपना नेता नहीं मान रहा है इसी कारण से वो सभी चुनाव में सहनी बहुल क्षेत्र में हारते है. बिहार में कोई नेता यूं ही नहीं बनता है इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है. बिहार में जितने भी जातीय नेता हैं वो काफी गरीब परिवार से निकलकर राजनीती के शिखर पर पहुंचे हैं वही मुकेश सहनी राजनीतिक शिखर पर पहुंचकर जातीय नेता बनना चाहते है. इसमें बहुत समय लगेगा. अगर यही बिहार दिल्ली जैसा होता तो एक या दो चुनाव में हो जाता लेकिन बिहार तो बिहार है. यहां के मल्लाहों को अपने बीच का नेता चाहिए जो बड़ी फिश नहीं दिखाए बल्कि बड़ी फिश को स्टोर कैसे करें, बड़ी फिश को एक्सपोर्ट कैसे करें इस पर बात करे.

सहनी की राह बीजेपी कर रही है मुश्किल

मुकेश सहनी अपनी चकाचौंध से मछुआरा को आकर्षित करना चाहते हैं वहीं भाजपा सहनी समाज को पार्टी में कद बढ़ाने के साथ केंद्र सरकार और बिहार सरकार में जगह देकर मछुआरों को जोड़ रही है. मुजफ्फरपुर के सांसद जो चुनाव के पहले इंडिया गठबंधन में थे वो लोकसभा चुनाव भाजपा से लड़े और अब मोदी सरकार में उन्हें केंद्रीय राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया. कहा जाता है कि बिहार में मछुआरो की राजधानी मुजफ्फरपुर है. वहां के मछुआरा सांसद को केंद्र में मंत्री बनाने से मुकेश सहनी को अलग थलग कर दिया गया है.

लालू के लिए लकी नहीं है मुकेश सहनी

यूं तो मछली को शुभ माना जाता है लेकिन बिहार में फिश पॉलिटिक्स ने लालू यानी राजद के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है. मुकेश सहनी को राजद के साथ गठबंधन करने से लोकसभा चुनाव में राजद को कुछ फायदा नहीं हुआ हालांकि सहनी की पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ गया. दूसरा सहनी के जगह तेजस्वी किसी अन्य दल या अन्य जाति के प्रमुख नेताओं को अपने सभाओं में जगह देते तो वोट प्रतिशत में जरूर बढ़ोतरी होती. 2019 लोकसभा में भी सहनी कुछ खास राजद गठबंधन के लिए नहीं कर सकें. इसलिए राजद ने उनको 2020 विधानसभा चुनाव में बाहर का रास्ता दिखा दिया था. अब 2025 विधानसभा चुनाव में राजद सहनी को कितनी अहमियत देती है ये देखना दिलचस्प होगा. बिहार के मल्लाह तो सहनी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं.