आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत दो दिनों तक बिहार में हैं. इस दौरान मोहन भागवत आरएसएस के कार्यक्रम मे हिस्सा लेंगे. ऐसे तो आरएसएस प्रमुख राजनीतिक कार्यक्रमों में भाग नहीं लेते और ना ही बयानबाजी करते हैं लेकिन 2015 में मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान ने भाजपा को काफी नुकसान पहुंचाया था. बिहार विधानसभा चुनाव होने में महज 4 माह बचे हैं ऐसे में मोहन भागवत के दौरे ने बिहार की राजनीती में हलचल पैदा कर दी है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का दो दिवसीय बिहार प्रवास आज से शुरू हो गया है. संघ प्रमुख पटना के मरचा मरची रोड स्थित केशव सरस्वती विद्या मंदिर में चल रहे कार्यकर्ता प्रशिक्षण वर्ग (प्रथम वर्ष, विशेष) में जाएंगे. सरसंघ चालक वहां चल रहे वर्ग का निरीक्षण करेंगे और स्वयंसेवको को संबोधित करेंगे. 11 जून की शाम को वापस चले जाएंगे.
बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव है. चुनावी साल में बीते 4 महीनों में भागवत का यह दूसरा बिहार दौरा है. संघ प्रमुख इससे पहले इसी साल मार्च महीने में 5 दिनों के लिए बिहार दौरे पर आए थे. इस दौरान 3 दिन मुजफ्फरपुर और दो दिन बिहार के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रवास किया था. चुनावी साल में संघ प्रमुख का दौरा पक्ष-विपक्ष दोनों के लिए अहम माना जा रहा है.
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले संघ प्रमुख के एक बयान ने चुनाव का सारा खेल बदल दिया था. संघ के मुखपत्र ‘पांचजन्य’ और ‘आर्गेनाइज़र’ को दिए इंटरव्यू में भागवत ने कहा था कि आरक्षण की ज़रूरत और उसकी समय सीमा पर एक समिति बनाई जानी चाहिए. साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि आरक्षण पर राजनीति हो रही है और इसका दुरुपयोग किया जा रहा है. इसे देखते हुए आरक्षण पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है.
बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में भारतीय जनता पार्टी की करारी हार के पीछे सरसंघचालक मोहन भागवत का वह बयाना माना जा रहा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि देश में मौजूदा आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा की जरूरत है। विपक्ष ही नहीं बीजेपी के कई नेताओं ने भागवत को हार का जिम्मेदार बताया था। संघ प्रमुख अक्सर कुछ न कुछ ऐसा बोल जाते हैं, जिन पर न केवल विवाद हो जाता है बल्कि बीजेपी की भी फजीहत होती है।
संघ प्रमुख का बिहार दौरा बीजेपी यानी सत्ता पक्ष के लिए सिर्फ अहम नहीं रहता है साथ ही विपक्ष के लिए अहम रहता है. विपक्ष में ख़ासकर राजद संघ प्रमुख के हर एक बयान पर पैनी नजर रखती है. विधानसभा चुनाव 2015 में आरक्षण नीति की समीक्षा करने संबंधी संघ प्रमुख मोहन भागवत की टिप्पणी को अपने पक्ष में भुनाने में सफल रहे थे राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव. लालू ने दावा किया था कि बिहार में 1995 जैसे हालात हैं जब ‘मंडल बनाम कमंडल’ की राजनीति के दौर में जनता दल विजयी हुआ था।
जानकारी के अनुसार आरएसएस बिहार को जीतने के लिए 3S शक्ति, शाखा और संपर्क फॉर्मूले पर काम कर रहा है. आरएसएस संगठन का उद्देश्य वोटिंग पर्सेंटेज बढ़ाना है. अगर भाजपा के नाराज वोटर्स बूथ तक जाएंगे तो वे भाजपा को ही वोट देंगे ये लगभग तय है. आरएसएस जानती है सत्ता वाली पार्टी के प्रति नाराजगी रहती है. इसके लिए आरएसएस उसके अनुसार काम करती है. इसका ताज़ा उदाहरण हरियाणा का विधानसभा चुनाव है जहाँ बीजेपी को हार दिख रही थी वहां आरएसएस ने बंपर जीत दिलाई थी. हरियाणा जैसा मुख्यमंत्री बदलने का प्रयोग तो आरएसएस नहीं कर सकती है लेकिन संगठन के कार्यशैली से बीजेपी को बड़ी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में बना सकती है.