बिहार में स्थापित है नीलम शिवलिंग, खुद विश्वकर्मा ने बनाया था यह शिव मंदिर

दूधेश्वर महादेव मंदिर को स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था. ऐसा कहा जाता है कि रात को मंदिर नहीं था लेकिन सुबह जब लोगों ने देखा तो यहां पर विशाल मंदिर बना हुआ मिला था.भगवान श्रीराम भी यहां पहुंचकर पवित्र सरोवर में स्नान करके ऋषि का दर्शन किया था और शिवलिंग की स्थापना करके पूजा अर्चना की थी, तभी से यह शिवलिंग यहां स्थापित है.

बता दे औरंगाबाद जिले के देवकुंड में च्यवन ऋषि के आश्रम के पास बने भगवान शिव की हजारो वर्ष पुरानी मंदिर है. वैसे तो यहां हर त्रयोदशी को भीड़ होती है. लेकिन महाशिवरात्रि और श्रावण माह में खास भीड़ होती है. देवकुंड का प्रसिद्ध दूधेश्वर महादेव मंदिर ना सिर्फ औरंगाबाद जिले, बल्कि बिहार के प्रमुख तीर्थ स्थानों में गिना जाता है. यहां नीलम पत्थर से निर्मित भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित है. जो हजारो वर्ष पुराना है. मान्यताओं के अनुसार यह कई हजार वर्ष पुराना है क्योंकि भगवान श्रीराम ने भी यहां पर पूजा की थी. देवकुंड धाम पर महाशिवरात्रि के दिन काफी भीड़ होती है. जहां हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है

विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भृगु ऋषि के पुत्र च्यवन ऋषि यहां तप करने पहुंचे थे, तब यह घना जंगल हुआ करता था. च्यवन ऋषि ने यहां आश्रम बनाया और एक कुंड की स्थापना की थी. बगल में एक पवित्र सरोवर है, जिसकी स्थापना भी च्यवन ऋषि ने ही किया था. बताया जाता है कि भगवान श्रीराम यहां पहुंचकर पवित्र सरोवर में स्नान करके ऋषि का दर्शन किया था और शिवलिंग की स्थापना करके पूजा अर्चना की थी, तभी से यह शिवलिंग यहां स्थापित है. देवकुंड मंदिर को लेकर यहां के लोगों के अनुसार कहा जाता है की यह विशाल मंदिर एक ही पत्थर में बना हुआ है.

ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के अलावे औरंगाबाद जिले मे ही उमगा मंदिर और देव स्थित सूर्य मंदिर का निर्माण एक ही रात में हुआ था और इसे स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था. ऐसा कहा जाता है कि रात को मंदिर नहीं था लेकिन सुबह जब लोगों ने देखा तो यहां पर विशाल मंदिर बना हुआ मिला था. शिव की नगरी देवतालाब का नाम ही तालाब से मिलकर बना है. देवतालाब मंदिर के आसपास कई तालाब हैं. वैसे देवतालाब में कई तालाबों का होना, यहां की विशेषता है. शिव मंदिर प्रांगण में जो तालाब है यह शिव-कुंड के नाम से प्रसिद्ध है. इस कुंड से जल भरकर ही श्रद्धालु सदाशिव भोलेनाथ के शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.