रिपोर्ट – राहुल प्रताप सिंह
इस बार 17 सितंबर है बेहद ही खास । बता दें की इस 17 सितंबर को बन रहा है शुभ संयोग । दरअसल इस बार 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा , अनंत चतुर्दर्शी , प्रितपक्ष और गणेश विसर्जन के विधान एक ही दिन हो रहा है .
भगवान विश्वकर्मा की पूजा : भगवान विश्वकर्मा की पूजा की शुभ मुहूर्त की बात करें तो श्रद्धालु दिन के समय कभी भी पूजा कर सकते हैं. हालांकि सुबह 6.30 बजे से शाम 6.16 बजे के बीच ही पूजा करें तो बेहतर होगा.
अनंत पूजा : अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत के दौरान पांडवों ने राज्य वापसी के लिए अनंत की पूजा की थी. ऐसे में अगर आप भी अनंत चतुर्दशी कर रहे हैं तो 17 सितम्बर को सुबह से पूजा कर सकते हैं. वहीं अनंत चतुर्दशी के दिन ही गणेश विसर्जन होता है. गणेश विसर्जन का दोपहर का मुहूर्त दोपहर 3:19 से 4:51 तक है.
पितृ पक्ष – हिंदू धर्म में पितरों की आत्माशांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए पितृ पक्ष का समय बेहद शुभ माना गया है। मान्यता है कि इस दौरान श्राद्ध,तर्पण और पिंडदान के कार्यों से पितर प्रसन्न होते हैं। पितृपक्ष की शुरुआत हर साल भाद्रपद माह की पूर्णिमा से अमावस्या तक होती है, जो इस बार 17 सितंबर 2024 से शुरू होकर 2 अक्टूबर 2024 तक रहेगा, इनमें कुल 16 तिथियां पड़ेगी जो इस प्रकार है-
17 सितंबर 2024, मंगलवार- पूर्णिमा का श्राद्ध
18 सितंबर 2024, बुधवार- प्रतिपदा का श्राद्ध
19 सितंबर 2024, गुरुवार- द्वितीय का श्राद्ध
20 सितंबर 2024, शुक्रवार तृतीया का श्राद्ध-
21 सितंबर 2024, शनिवार- चतुर्थी का श्राद्ध
21 सितंबर 2024, शनिवार महा भरणी श्राद्ध
22 सितंबर 2014, रविवार- पंचमी का श्राद्ध
23 सितंबर 2024, सोमवार- षष्ठी का श्राद्ध
23 सितंबर 2024, सोमवार- सप्तमी का श्राद्ध
24 सितंबर 2024, मंगलवार- अष्टमी का श्राद्ध
25 सितंबर 2024, बुधवार- नवमी का श्राद्ध
26 सितंबर 2024, गुरुवार- दशमी का श्राद्ध
27 सितंबर 2024, शुक्रवार- एकादशी का श्राद्ध
29 सितंबर 2024, रविवार- द्वादशी का श्राद्ध
29 सितंबर 2024, रविवार- माघ श्रद्धा
30 सितंबर 2024, सोमवार- त्रयोदशी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2024, मंगलवार- चतुर्दशी का श्राद्ध
2 अक्टूबर 2024, बुधवार- सर्वपितृ अमावस्या
किस समय करें श्राद्ध कर्म
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सुबह और शाम के समय देवी-देवताओं की पूजा पाठ की जाती है और दोपहर का समय पितरों को समर्पित होता है. दोपहर में करीब 12:00 बजे श्राद्ध कर्म किया जा सकता है, इसके लिए कुतुप और रौहिण मुहूर्त सबसे अच्छे माने जाते हैं. सुबह सबसे पहले स्नान आदि करने के बाद अपने पितरों का तर्पण करना चाहिए, श्राद्ध के दिन कौवे, चींटी, गाय, देव, कुत्ते और पंचबलि भोग देना चाहिए और ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए.