रिपोर्ट: सुजीत पाण्डेय
झारखण्ड की राजनीती मे इस समय ऑल इज वेल नहीं दिख रहा है. हाल मे पूर्व मुख्यमंत्री हुए चंपई सोरेन का ‘दर्द’ छलक पड़ा है। उनके चेहरे का भाव पर ये गाना को सटीक बैठ रहा है “मेरे प्यार वाले सभी फूल मुरझाए काँटे ही ख़िज़ाँओं वाले मेरे हिस्से आ गए, यार ने ही लूट लिया घर यार का”.चंपई सोरेन को टिस है बस दो से तीन माह था रहने देते इतनी क्या जल्दबाजी थी. हेमंत सोरेन के इस राजनीती कदम पर बीजेपी पूरी नजर बनाकर रखी है. बीजेपी बस इंतजार है एक कदम चंपई सोरेन बढ़ाये बाकी काम हम कर लेंगे.
पूरा मामला आपको बताते है हेमंत सोरेन ने जेल से जमानत पर छूटने के हफ्ते भर के भीतर ही झारखंड की कमान अपने हाथ में ले ली है. लेकिन इसके लिए चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री की मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी, वो भी झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 से बमुश्किल दो महीने पहले. चंपई सोरेन का मानना था कि महज दो महीने के लिए मुख्यमंत्री बदले जाने से बाहर अच्छा संदेश नहीं जाएगा. चंपई सोरेन की तरफ से ये भी समझाने की कोशिश हुई कि वो भी कोई गये गुजरे नेता तो हैं नहीं फिर भी हेमंत सोरेन नहीं माने. हेमंत सोरेन की इस जिद्द से चंपई सोरेन को बहुत दुःख पहुंचा है. चंपई सोरेन का अच्छा खासा जनाधार है. झारखंड के कोल्हान क्षेत्र से आने वाले चंपई सोरेन का इलाके में काफी मजबूत जनाधार है और इलाके की दर्जन भर से ज्यादा विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखते है.
भाजपा चुनाव को लेकर चुप है
भाजपा हेमंत सोरेन पर परिवारवाद का आरोप तो लगा रही लेकिन राजनीती कदम उठाने मे हिचक रही है. बिहार मे जीतनराम मांझी प्रकरण से मिलता जुलता मामला तो दिख रहा है लेकिन हालात बिल्कुल अलग है. इसलिए बीजेपी कुछ भी राजनीती कदम नहीं उठा रही है. भाजपा इंतजार मे है की चंपई सोरेन कोई बड़ा कदम उठाये फिर हम साथ देंगे.
सोचिये हेमंत सोरेन, चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बने रहने देते तो क्या निश्चिंत होकर चुनाव कैंपेन पर फोकस नहीं करते और अगर चुनाव जीत जाते तो बड़े आराम से मन करता तो खुद या कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बना देते. तब तो शायद ही किसी को आपत्ति होती. हेमंत सोरेन के लिए आगामी विधानसभा चुनाव का राह आसान नहीं दिख रहा है. करप्शन और परिवारवाद के मुद्दे चुनावी समर मे मुंह बंद करवा देगी और साथ ही एक मजबुत साथी अगर साथ रहा तो मजबूती से साथ खड़ा नहीं रहेगा.